Lalita Vimee

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औरत, आदमी और छत , भाग 22

भाग 22

वक्त कब किसी की मानता है, कब की  किसी की सुनता है बस अपनी ही मर्जी से अपनी ही गति से चलता रहता है।बहुत उहापोह थी मिन्नी के दिमाग में,क्या करू,किस से सलाह लूं, ज़िंदगी क्या किसी की सलाहों से चलती है।  बहुत अजीब सी दुविधा में घिरी थी वो।मिन्नी रीति को ले कर भी बहुत परेशान थी।अब एक महीने बाद छुट्टियाँ भी हो जायेंगी उसकी,हास्टल के बाद एक ठिकाना तो होना ही चाहिए मेरे पास भी।
             तभी तेज तेज चलती हवा ने उग्र तुफान का रूपधारण कर लिया था। बारिश की तेज बौछारें गिरने लगी थी।
तभी गाड़ी अंदर आकर रूकी थी,वीरेंद्र ही थे। हाथ में एक पैकिंग भी थी। पैंकिंग को पानी से बचाते हुए वो अंदर आ ग ए थे।
मिन्नी लो गरमा गरम पकोड़े लाया हूँ चलो अपने लिए चाय बना लो।
आप चाय नहीं लेंगें।
नहीं मैं मेरे लिए बीयर लेकर आया हूँ, सोचा बाहर पी लेता हूँ तो बीबी नाराज़ हो जाती है अब से घर पर ही लिया करूंगा।
एक डर और एक वितृष्णा ने मिन्नी की जुबान को ताला लगा दिया था।उसनें पकोड़े प्लेट में डाल दिए थे।
आप खाईये मैं तब तक नहा लेती हूँ, बहाना बना कर वो बाथरूम में चली गई थी।हाँ उसनें अपना फोन जरूर बंद कर दिया था।
वीरेंद्र ने टीवी आन कर लिया था।
बाथरूम से आते ही मिन्नी ने खाने के लिए पूछा था, ये उसके अंदर का डर ही था वरना चाय पकोड़े उसे भी अच्छे लगते थे।पता नहीं वो सब कुछ फटाफट निपटा कर किस की नजरों सै निर्दोष साबित होना चाहती थी या फिर बचना चाहती थी किसी से,शायद अपनी अतंरात्मा से। 
कुछ पहले का नशा था और एक बीयर और वीरेंद्र शायद भूल गए थे कि पकोड़े भी लाए थे अपनी मिन्नी के लिए।
खाना खाकर वो सो ग ए थे।
सुबह मिन्नी ने स्कूल जाकर उन डायरेक्टर मैडम से  बात की थी,उसने अपनी स्थिति से अवगत कराते हुए बता दिया था कि उसकी एक बेटी भी है जो हास्टल में पढ रही है। गर मुझे  एक कमरे का सैट अलाट कर दिया जाये तो मेरी ये दुविधा खत्म हो जायेगी और मैं अपना हास्टल वाला कमरा छोड़ दूंगी। मैडम मिन्नी की सच्चाई और स्पष्ट वादिता से बहुत खुश हुई थी।उन्होंने तुरन्त  आस्था मैम को बुलवा कर मिन्नी के नाम रेजिडेंस अलाट करवा दिया था।मिन्नी ने भी  पैसे जमा करवा कर अपने  इस नये ठिकाने की चाबी ले ली थी।ताकि हास्टल में रखा सामान वो यहाँ रख सके।उसे लगा कि उसके सिर से बहुत बड़ा बोझ उत्तर गया है,अब वो जब चाहें अपनी रीति के साथ यहाँ रह सकती हे।
    मैडम ने तो यहाँ तक भी कहा था कि आप को गर अपनी बेटी को हास्टल में ही रखना है तो क्यों नहीं उसे आप अपने इस स्कूल में रखती।
मैम सोचा तो मैने भी यही था, पर शायद मुझे इस के लिए कुछ वक्त चाहिए गा।अभी चार पाँच महीने ही हुए हैं शादी को मैं ऐसा कुछ भी नहीं करना चाह रही थी जो पति को अच्छा न लगे।पर पता नहीं हालात को क्या मंजूर है।
आप परेशान न हो मृणाली सब अच्छा ही होगा, आप एक बहुत हिम्मती लड़की हैं।
शाम को घर पहुंची तो वीरेन्द्र पहले से ही आये हुए थे।मकान मालिक अंकल जी भी उन्हीं की तरफ आये हुए थे।मिन्नी ने उन्हें नमस्ते किया और अंदर आ गईथी।
मिन्नी. चाय  बना लो अंकल जी के लिए।
नहीं बेटा मैं चाय तुम्हारी आंटी के साथ ही पीता हूँ, जीवन में एक यही ऐब पाला था आर्मी में जाकर और वो भी अपनी बेगम के साथ ही पीता हूँ, ताकि  बेगम साहिबा नाराज़ न हों।
अंकल आन्टी जी को भी बुला लाते हैं, सब साथ ही पीते हैं.
नहीं बेटा वो अभी पैकिंग में बिजी हैं कह तो रही थी जाने से पहले मिन्नी से मिल कर जाऊँगी।
तभी  मिन्नी जो उनकी बाते सुन चुकी थी थर्मस कप में चाय डाल कर ले आई थी। अंकल जी मैने आपके और आन्टी जी दोनों के लिए चाय बना दी  है।मैं ये उधर रख आती हूँ। 
अरे अरे बेटा थैंक्स  पर तुम रहने दो,अभी आई हो डयूटी से तुम दोनों चाय पी लो, ये मैं ले जाता हूँ।
वो चाय लेकर चले गये थे।
मिन्नी ने चाय का कप वीरेंद्र की तरफ बढ़ा दिया था।
वीरेंद्र ने चाय पीते हुए मिन्नी को बताया था कि मुझे तो इन कर्नल अंकल का फोन आया था, ये और आंटी एक महीने के लिए बाहर घूमने जा रहें हैं ,इनके गाँव का ही कोई रिश्तेदार अपने परिवार के साथ यहाँ रहेगा तो ,इन्होंने उस से परिचय के लिए ही बुलवाया था। इसलिए मुझे आना पड़ा।

अभी फिर जाना है क्या।

आप कहेंगी तो नहीं जायेंगे।

ये फ्रिज पर गिफ्ट पैक कैसा रखा है मिन्नी।

ये नीरजा की शादी के लिए साड़ी खरीदी थी वही पैक करवाई है।

कब है उसकी शादी।

आज से तीन दिन बाद।

तुमनें बताया भी नहीं।

सुबह अपनें कामों पर निकलने  की जल्दी होती है,रात को जब आप आते हैं तो मुझे तो आपके तेवरों से ही डर लगता है। बातें करना तो एक अलग विषय है।
तुम्हारे  खुद का दिमाग में एक डर छिपा है उसका मेरे पास कोई इलाज नहीं है,और ये अपेक्षा मुझ से मत रखना कि मैं तुम्हारे हाथ की डुगडुगी बन जाऊँगा।
मैंने ऐसा तो कुछ नहीं कहा आपसे। मिन्नी को वहाँ से उठना मुश्किल हो गया था।   उसनें बाथरूम में जाकर कपड़ें धोने के लिए मशीन लगा ली थी।

 वीरेंद्र उठ कर दूसरे कमरे में चला गया था।

मिन्नी ने अगले दिन कन्नु को फोन करके अपने गिफ्ट्स उसी को दे दिए थेऔर नीरजा को एक माफीनामा रूपी खत लिखकर भेज दिया था। उसने स्कूल जाना शुरू कर दिया था।ये नया काम उसे बहुत अच्छा लगता था।ग्याहरवीं, बारहवीं की लड़कियों को  अंग्रेजी और  साथ में पत्रकारिता और जनसंपर्क जैसे विषय ही उसके जिम्मे आये थे। हास्टल से अपना सामान वो एक टैम्पो में रखवा कर यहाँ अपने कमरे में ले आई थी।उसके कमरे के बराबर में ही एक आन्टी रहती थी, उनका काम हास्टल में रहने वाली लड़कियों की देख भाल करना होता था, गर कोई बीमार हो जाये तो हास्टल डिस्पेंसरी में लाना लेआना उन्हीं की जिम्मेदारी होती थी। बहुत अच्छे स्वभाव की लगी थी वो मिन्नी को। 
   मिन्नी आपने कमरे में रोज तो जाती नहीं थी,इतना समय ही कहाँ बचता था।हाँ वो जबभी जाती कृष्णा आन्टी उसे देखकर मुस्कराती जरूर। वो भी उन्हें आन्टी नमस्ते कह देती।आज तीस म ई थी।एक जून से छुट्टियाँ होने वाली थी।आज टीचर्स की अधिक समय तक डयूटी थी क्योंकि कल से हास्टल के बच्चे घर चले जायेंगे, उनको होमवर्क तथा अन्य औपचारिकताएं आदि थी।व्यस्तता के साथ मिन्नी के दिमाग में एक परेशानी भी थी।वीरेंद्र ने अभी तक  रीति की छुट्टियों के बारे में कोई जिक्र नहीं किया था।

      वो एक बार अपने कमरे में गई थी ।सामने आन्टी मिल गई थी।नमस्ते आन्टी जी।
नमस्ते मैडम। आज तो आपको चाय पीकर जानी पड़ेगी ,क्योंकि आज तो आपको वैन की जल्दी भी नहीं है।
और शाम के पाँच बज चुके हैं।चाय का समय भी हो गया है।
ठीक है आन्टी आज आपके साथ चाय जरूर पियें गे पर हमारी एक शर्त रहेगी, आप हमें मैडम नहीं बोलेंगी।
पर मैडम ये स्कूल है यहाँ के नियमानुसार तो,,,

तो ठीक है ना स्कूल में आप हमें मैडम बुला सकती हैं पर यहाँ आप हमें मिन्नी कहकर बुलायेंगी।

ठीक है  मिन्नी बेटी लो चाय पी लो।

आप घर कब जायेंगी आन्टी।

मैने कहाँ जाना है बेटा कोई घर नहीं है मेरा।

पर आपका परिवार?

कोई नहीं है बेटा।

मिन्नी की आँखें भर आई थी।

तुमसे भी एक बात पूछनी थी मिन्नी यहाँ ये कमरा क्यों ले रखा है, जबकि रहती तो तुम बाहर हो परिवार के साथ।

मेरी भी एक कहानी है आन्टी ।आज  परेशान तो थी हीकुछ आन्टी की बातों ने भी भावुक कर दिया था।उसने आन्टी को रीति के बारे में बता दिया था।
परेशान न हो बेटी जीवन है पता नहीं क्या क्या देखना पड़ता है।और सुनो मैं हूँ यहाँ मुझे कोई परेशानी नहीं होगी गर रीति मेरे पास रहेगी तो ।बल्कि मेरा भी मन लगा रहेगा, तुम्हारा जब मन करे आना जब मन करे जाना।

वो आन्टी से विदा लेकर निकल ही रही थी कि  डायरेक्टर मैम ने उसे देख कर बुलवा लिया था।
आप अभी गई नहीं मृणाली मैम।

मैम मैं अपने रेजिडेंस पर थोड़ा सामान  रखने गई थी,क्योंकि अभी बेटी को भी तो लाऊँगी न,उसकी भी छुट्टियाँ है।

बिल्कुल बिलकुल।अरे हाँ मृणाली मैं आपको बताना ही भूल गई वो अपनी हाऊस मदर हैं न कृष्णा, वो यहीं हास्टल में ही रुकती  हैं ,आप ज्यादा परेशान मत होना वो बहुत अच्छी  महिला हैं ।आप जब चाहें उनके पास बेटी को छोड़कर घर भी जा सकती हैं। मेरी नातिन को भी उन्होंने ही पाला है,बल्कि यूं कहिये कि वो मेरे परिवार का एक हिस्सा ही हैं।

आपनें तो मेरी परेशानी ही हल कर दी मैम। बहुत शुक्रिया आपका।

अरे अरे ऐसा कुछ नहीं मृणाली मेरा हर स्टाफ मैम्बर मेरे लिए मेरे परिवार के सदस्य जैसा है।मेरे परिवार के सदस्यों की परेशानी का समाधान मेरा कर्तव्य  है।

आप घर कैसे जायेंगी अब।

मैडम आटो मिल जायेगा सड़क से।

रहने दें शहर तक आपको मेरा ड्राइवर छोड़ देगा,।वहाँ से आप ऑटो ले लीजिएगा।

मैम प्लीज मैं मैनेज कर लूंगी।

तभी मैम ने चपड़ासी को बोला कि  ड्राइवर को बोलो ,मृणाली मैम को शहर छोड़ आये।

जाओ मृणाली।

मृणाली  के हाथ जुड़ ग ए थे जो  अभिवादन के साथ साथ शुक्रिया भी अदा कर रहे थे।

वीरेंद्र रात को देर से आया था,और उसे काम से दो दिन के लिए देहली जाना था।  मिन्नी ने अगले दिन अपने स्कूल का काम जल्दी निपटा कर वहीं से बेटी को लेने  चली गई थी। वो शाम को अपने स्कूल वाले रेजिडेंस में पहुंच गई थी।कृष्णा आन्टी रीति से मिल कर बहुत खुश हुई थी।  मिन्नी ने रीति की जरूरत का सारा सामान यहाँ जमा कर दिया था। आज रात वो भी यही  रूक गई थी। खाना उसनें ही बनाया था कृष्णा आन्टी का भी। आन्टी रीतिका को सारी बिल्डिंग दिखा कर लाई थी।

मंमी ये स्कूल तो मेरे स्कूल से भी बड़ा है।नानी ने मुझे पार्क भी दिखाया।

कृष्णा आन्टी ने ही रीति को कहा था कि मैं तुम्हारी नानी हूँ, जब रीति ने पूछा था कि ये कौन हैं।

खाना खाकर सब बैठे ही थे कि वीरेंद्र का फोन  आ गया था।
तुम्हारा नम्बर नहीं लग रहा था मिन्नी, कल दस बजे तक माँ आयेंगी उन्हें डाक्टर को दिखाना है।

कोई बात नहीं मैं अभी माँ को फोन कर लेती हूँ।
ठीक  है बात कर लेना।

मिन्नी की अपनी सास से बात हो गई थी वो सुबह दस बजे तक घर पहुंच जायेंगी।

मिन्नी ने आन्टी को बता दिया था,उन्होंने कहा था, कोई बात नहीं है, रीति की चिन्ता बिल्कुल न करे।
मिन्नी ने सुबह उठ कर नाशता व लंच बना दिया था,आन्टी और रीति दोनों के लिए।

मिन्नी ने ये कमरा भी आन्टी के सपुर्द कर दिया था।आन्टी को कुछ  रूपये भी दे दिए थे कि कोई जरूरत हो तो मंगवा लीजिएगा।

मिन्नी सुबह नौं बजे ही अपने घर पहुंच गई थी तभी कमला भी सफाई करने आ गई थी।
दीदी मैं तो पहले भी आई थी पर आप नहींथी।

अरे मैं सुबह सुबह मंदिर तक चली गई थी,वो खुद के झूठ पर खुद ही हैरान थी। सास के लिए भी खाने की तैयारी कर ली थी,एकाएक उसे चक्कर सा महसूस हुआ था। तभी दरवाजे पर घंटी बजी थी माँ को लेकर अंदर  आ रही थी कि फिर चक्कर सा महसूस हुआ जो उसकी सास ने भी देखा।
क्या हुआ बेटी।

कुछ नहीं माँ, शायद थकान की वजह से चक्कर आ गया हो।
सारा दिन लगी रहती हो अपना ध्यान तो रखना नहीं, चक्कर ही आयेंगे।
माँ को  चैक अप के बाद दवाई दिलाने लगी तो  उन्होंने जबरन उसको भी खून टेस्ट करवाने को बोला।
आधे घंटे बाद आई रिपोर्ट  किसी को चहकाने वाली थीऔर  किसी को थोड़ा और उदास करने वाली थी।

क्रमशः
कहानी,औरत आदमी और छत
लेखिका, ललिता विम्मी।।
भिवानी, हरियाणा 

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